आगे क्या… कोविड -१९ के सामाजिक प्रभाव

दुनिया इस वक्त एक बहुत कठिन दौर से गुजर रहा है । विश्व भर में सामाजिक और आर्थिक तौर पर लगभग सारे देशों का बहुत नुक़सान हुआ है जिसकी बहुत बड़ी क़ीमत लोगों को चुकानी पड़ रही है। आर्थिक समाधान तो शायद आने वाला कल तो सुधार लेगा मगर सवाल यह है के हमारे निजी, सामाजिक और व्यापार व्यवहार में कितना बदलाव आएगा?

क्या हम जल्द इस वाक़या को भुल जाएँगे और ज़िंदगी जैसी थी वैसे ही फिर से बसर करने लगेंगे ? क्या कोविड १९ का हमारे काम करने के तरीके, मनोरंजन के साधन, रहन- सहन, लोगों से मिलना-झुलना आधि इन सब पर आगे जाके भी प्रभाव रहेगा? क्या यह हमारे निजी, सामाजिक, आर्थिक और सियासी मामलों के हर पहलू में बदलाव लाएगा? 
क्या सामाजिक दूरी एक नई सामान्य स्तिथि होगी? क्या अब एक दूसरे से हाथ मिलाने से , गले लगने से और जादू की झप्पी देने से लोग कतराएँगे? क्या हम क्रिकेट मैचेज़ स्टेडीयम में देखने जाएँगे, क्या हाउसफ़ुल के बोर्ड सिनेमा घरों में फिर देखने को मिलेंगे, क्या मॉल्ज़ में, रेस्ट्रांट्स में वो भीड़ फिर दिखायी देगी? क्या मेलों में, बाज़ारों में और  प्रोग्रामों में वो चकाचौंध कर देने वाला माहौल वापस आएगा? क्या हमारे ब्याह शादी उसी प्रकार से होंगी जैसे पहले होती थीं? क्या हमारी छुट्टियाँ, सफ़र और आम मनोरंजन के साधन वैसे ही हुआ करेंगे जैसे पहले थीं?
क्या तकनीकी अविष्कार ( technical discoveries), प्रौद्योगिकी( technology), कृत्रिम होशियारी( artificial intelligence) आधि हमारे काम करने के और पढ़ने के तरीक़े और सामाजिक व्यवहार में बदलाव लाएँगे?  
काफ़ी व्यावसाय  ऐसे हैं जो घर से कार्य करने के लाभ और सुविधा से प्रभावित होकर अब पूरी संजीदगी से अपने काम करने के तरीक़ों में तब्दीली कर रहे हैं। बड़ी कम्पनीयाँ जैसे TCS एवं Wipro अब अनुमान लगा रहे हैं के अगले  ५ साल में सिर्फ़ २५% लोगों को दफ़्तर आने की ज़रूरत होगी, बाक़ी घर से काम कर सकेंगे। विश्वभर में TCS के तक़रीबन ४.५ लाख कर्मचारी हैं। अगर अब सिर्फ़ २५-३५% को दफ़्तर आने की ज़रूरत हो तो उनके प्रॉपर्टी की आवश्यकताएं कम हो जाएँगी और उनको लागत अनुकूलन ( cost optimization) का लाभ भी मिलेगा। ऐसी विश्वभर में हज़ारों लाखों कोंपनियाँ होंगी जिससे रियल इस्टेट के क़ीमतों में काफ़ी फ़रक पड़ सकता है । हाँ घर से कार्य करने की रसद (logistics) और उससे जुड़े खर्चे इत्यादि होंगी लेकिन आगे जाकर फ़ायदा ही रहेगा। ज़मीन की क़ीमतों में गिरावट की और सम्भावना है जब बड़े होटेल और मॉल्ज़ की परियोजनाओं में भी रुकावट आएगी और इन व्यवसाय के नए  व्यापार के नए ढंग और तौर तरीक़े  (business models) सामने आएँगे। 
शायद स्थायी रोज़गार ( permanent employment) से ज़्यादा अब संविदआत्मक रोज़गार (contractual employment) का प्रमाण ज़्यादा हो। इस से परिवारों पर और देश की आर्थिक अवस्था पर क्या असर होगा? 
क्या पढ़ाई के पाठ्यक्रम ( syllabus) पे अब ध्यान देने का वक्त आ गया है? बदलने का वक्त तो और कारणों के वजह से था ही, पर अब आगे के हाल देखते हुए इसे और गम्भीरता से लेना होगा।  क्या स्कूल कॉलेज में बच्चे कम आएँगे और दुनिया भर से किसी भी विद्यालय या विश्विधलाय से वो ऑनलाइन डिग्री प्राप्त करेंगे? इसके नियम कौन तय करेगा जिससे इन डिग्रीज़ की क़ीमत विश्वभर में हो। एक होता है बचपन में औपचारिक शिक्षा (formal education) पाना फिर ऑनलाइन डिग्री हासिल करना मगर जब औपचारिक शिक्षा  ही ना रहा हो तो क्या हर एक देश इस शिक्षा  को सामान्य नज़रिए से देखेगा?
इस में दो राय नहीं के कोविंड-१९ के अनुभव और असर ने दुनिया भर में बहुत सारे सवाल और  मुश्किलें खड़े कर दिए हैं जिनके समाधान में उनके सरकार,शासन-प्रबंध, उद्योगपति और आम नागरिक पूरी तरह से जुटे हुए हैं। फ़ैसले बहुत जल्द लिए जा रहें हैं चाहे वो प्रशासन के हों, स्वास्थ्य से जुड़ी हर पहलू से हों जैसे कि अनुसंधान(research) मेडिकल साधन बनाने की अनुमति  (permissions), अस्पताल और चिकित्सालय को तेज़ी से बढ़ाना और लोक स्वास्थ्य के नीतियाँ में बदलाव लाने का काम जारी है। प्रशासन सम्बंधित फ़ैसले भी जल्द लिए जा रहे हैं और हालत देखकर हर दिन हर पल कोई ना कोई बदलाव या नीति के प्रस्ताव आ रहे हैं। क्यूँकि पूरी दुनिया इस जंग से भिड़ने में जुटी हुई है, कई फ़ैसले अगर जल्द बाज़ी में लिए जाएँ बाद में भारी पड़ सकते हैं। 
वक्त अब हर देश को अकेले राष्ट्र एकांत में नहीं परंतु वैश्विक तौर पे एकजुट्ट होके (global solidarity) साथ काम करने का है।  एक सामान्य कार्य योजना ( plan of action) की सक़्त ज़रूरत है जहां विश्व भर के साधनों को हर एक देश को उपलब्ध किया जाए ताकि किसी भी प्रकार की  कोई भी खोज, आविष्कार, दवाई, उपकरण, समाधान, विशेषयज्ञ, कर्मियों या धन की अगर ज़रूरत पड़े तो बिना शर्त और हिचकिचाहट के मिल जानी चाहिए। 
दुनिया भर में आर्थिक अवस्था बहुत गम्भीर है। भारत में ही नुक़सान १७-२० लाख करोड़ का बताया जा रहा है। दूसरे आक्रें तक़रीबन १०० बिल्यन डालर्ज़ यानी लगभग ७.६ लाख करोड़ का अनुमान लगाए बैठे हैं जिसमें ४ लाख करोड़ पूँजीगत व्यय ( capital expenditure) १ लाख करोड़ आधारिक सरंचनाएँ ( infrastructure), १.५ लाख करोड़ डिरेक्ट बेनेफ़िट्स ट्रान्स्फ़र,  
२ लाख करोड़ उनौपचारिक क्षेत्र ( informal sector) एवं माध्यम और छोटे वर्ग के उद्योग को वेतन सहयोग,  नए चिकित्सा प्रबंध ५०००० करोड़, हाउज़िंग सेक्टर को २५००० करोड़ और nbfc को २५००० करोड़, २ लाख करोड़ बैंक्स को पूँजीगत सहाय और २ लाख करोड़ सरकार के बकाया. २ लाख करोड़ sidbi जैसे संस्थानों के लिए इत्यादि। कुल मिलाकर क़रीब १७.५ लाख करोड़ की आर्थिक सहायता की अपेक्षा है।
 अब तक सरकार ने कोविड के बाद लिए गए फ़ैसले, और सारे माध्यम और नीतियों एवं रिज़र्व बैंक ओफ़ इंडिया के उपायों से लगभग ५-६ लाख करोड़ सिस्टम में डाल दिया है। अन्य अक्रों में भारत ने २२.६  बिल्यन डालर्ज़ की आर्थिक सहयोग को घोषणा की है। साफ़ ज़ाहिर है के इन सब प्रयासों के बावजूद अभी बहुत कुछ करना बाक़ी है। 
भारत में ५० कोंपनियों में आज भी २५००० करोड़  से ज़्यादा अधिशेष नगद ( cash surplus) प्रत्येक कम्पनी में हैं। ज़रूरत है इन कम्पनियों को भारत में और निवेश करने की। ज़रूरत है यहाँ निवेश करने के लिए और भी सरल नीतियों की। ज़रूरत है उद्योग को बढ़ावा देने के लिए हर वो रास्ता खोजने की, हर वो उलझन सुलझाने की , हर वो बाधा दूर करने की जो उद्योग और उससे जुड़े रोज़गार को बढ़ने से रोक रहा है। 
चीन के प्रति सारे देशों में क्रोध,आक्रोश और असंतुष्टि है।  कुछ देश तो वहाँ से अपने उद्योग निकालने का फ़ैसला भी ले रहे हैं और अपने उद्योगपतियों को आर्थिक सुविधाएँ भी दे रहे हैं जिनसे वो इन उद्योगों को अपने यहाँ या अन्य देशों में शुरू कर सकते हैं। इसका पूरी तरह फ़ायदा हमारी सरकार को लेना  चाहिए। अपनी नीतियों में,  व्यापार शर्तें, भूमि अधिग्रहण, निवेश और उद्योग से जुड़ी हर पहलू को सम्मान्य, सरल और साफ़ करना चाहिए। कुछ राज्यों ने इस पर काम करना शुरू भी कर दिया है और वो अपनी नीतियों को और निवेश के हालात में सुधार ला रहे हैं मसलन उत्तर प्रदेश जिन्होंने कुछ दिन पहले इसकी घोषणा की है और अब सारे देशों के राजदूतों के सम्पर्क में है। 
देश की आर्थिक अवस्था को मज़बूत करने के लिए बहुत महनत करनी होगी और इसके जल्द सुधरने के आसार नही हैं। मज़दूर वापस चले गए हैं, डिमांड नहीं है और टैक्स या कर और निवेश के नीतियों में और बहुत सुधार की ज़रूरत है। इंटर्नैशनल मनेटेरी फंड IMF ने इस साल भारत की GDP की बढ़त १.९% का अनुमान लगाया है लेकिन साथ में यह भी कहा है है के अगले  साल यानी २०२१ में  ७.४% हो सकता है। यह एक उम्मीद की किरण से ज़्यादा है क्यूँकि इस अनुमान से मालूम पड़ता है के यह स्तिथि अस्थायी है सिर्फ़ कुछ महीनों के लिए, और संरचनात्मक ( structural) नहीं है। इस रात की सुबह तो आएगी पर देखना यह है के कब। 
क्या दुनिया के सभी देश चीन से हिसाब माँगेंगे और क्या चीन अपनी महाभूल की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार है?  विश्व आर्थिक उत्पाद का १% तक गिरने की सम्भावना है। पिछले साल ३.९% से बढ़ा था और तक़रीबन ९० ट्रिल्यन डालर्ज़ था। सियासती तौर पे बहुत चीजें बदलेंगी और चीन को इस नुक़सान का किसी ना किसी तरह भुगतान तो करना पड़ेगा। कहीं जाँच में पाया गया के  यह विषाणु प्राकृतिक नहीं, कृतिक्रिम है और उनके प्रयोगशाला में बनायी गयी है तो ना जाने क्या राजनीतिक फ़ैसले और कदम लिए जाएँगे।
कोविड – १९ ने बहुत कुछ बदल दिया है और ज़रूरी नहीं के अगर इसका समाधान भी हो जाए किसी टिके या दवाई से के कोई नई संक्रामक बीमारी नहीं होगी। हमें  अपने पर्यावरण की सुधार के लिए अब अधिक श्रम करना होगा,और नए नीतियाँ लानी होंगी। वन्य जीवन और उनकी रक्षा हेतु कड़े कदम लेने होंगे और लुप्तप्रायः पशु और चिड़ियों ( endangered species)  की रक्षा करनी होगी और दुनिया के वेट मार्केट्स बंध करने होंगे। 
उम्मीद है के जो  समाधान और फ़ैसले हर सरकार लेगी वो सोच समझ के और सभी के हित में होगी। मानवता पर कभी इतनी बड़ी संकट नहीं आयी के विश्व भर में एक साथ सभी पर एक ही समय वोहि तबाही आयी हो। इतिहास के पन्नों में चाहे वो विश्व युध क्यूँ ना हुए हों, प्लेग, ग्रेट डिप्रेशन, पॉर्टिशन वो सभी कुछ हिस्सों तक सीमित थीं, लेकिन विविड – १९ ने तो सारी दुनिया एक समान कर दिया। 
इसके हल के आसार अब बहुत ज़्यादा हैं, बीमारी अब कम हो रही है, अगर बढ़े भी तो लेकिन वीगन चिकित्सा देखभाल की ज़रूरत कम होतीं जा रही है संक्रमित लोगों के १-२%। दूर दृष्टि, कड़ी महनत, पक्का इरादा और अनुशासन साथ में संकल्प और सैयम से हम इस दौर से भी गुज़र जाएँगे। 
हरिवंश राय बच्चन जी की वो पंक्तियाँ याद आती हैं 
‘आ पहुँचे अब दूर नहीं बस चार कदम और चलना है 
चहक रहे हैं सुन पीनेवाले, महक रही ले मधुशाला’